गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रेट एग्जम्टेड की सीटो पर आरक्षित श्रेणी का कोटा लागू कराने के लिए किये गए संघर्ष की एक रिपोर्ट :


गत 16 नवम्बर , दिन शुक्रवार को नेट व् जे आर ऍफ़  क्वालीफाई कर चुके sc-st-obc वर्ग के छात्र -छात्राए bhu के हिंदी विभाग  में उस वक्त धरने पर बैठ गए जब उन्हें पता चला की रेट एग्जम्टेड  की सितो पर आरक्षित वर्ग के लिए  कोटा लागू नहीं किया गया है। पहले तो विभागाध्यक्ष  प्रो .बलराज पांडे से मिलकर यह निवेदन किया की सभी 38 सितो जिन पर सामान्य भर्ती  की गयी है उन पर अरक्षित श्रेणी के लिए कोटा लागु किया जाये। लेकिन प्रो . बलराज पांडे ने कोटा लागु करने से यह कह कर इंकार कर दिया की यु जी सी  से जो निर्देश आये  है उनके तहत रेट एग्जम्तेद की सितो पर कोटा देने का कोइ प्रावधान नहीं है। इसके बाद भगत सिंह छात्र मोर्चा और अनुसूचित जाति -जन जाति छात्र संगठन के सयुंक्त  नेत्रित्व में आरक्षित श्रेणी के छात्र-छात्राए हिंदी विभाग के सामने ही धरने पर बैठ गए। लगभग दो घंटे तक धरनारत छात्रो द्वारा नारेबाजी करने के बाद अपनी किरकिरी होते देख विभागाध्यक्ष प्रो . बलराज पांडे , प्रो .अवधेश प्रधान सहित अन्य सिक्षाको के साथ धरना दे रहे छात्रो के पास आये। पहले तो इन लोगो ने धरनारत छात्र -छात्राओ को समझाने-बुझाने की कोशिश की लेकिन छात्र-छात्राओ द्वारा कड़ा प्रतिवाद करने पर अंततः इन्हें झुकना पड़ा और यह कहना पड़ा की कल sc-st-obc आरक्षित सीटो पर कोटा दिया जायेगा और संशोधित सूचि निकली जायेगी। अगले दिन संशोधित सूचि निकली गयी जिसमे सीटे 38 से बढाकर 62 कर दी गयी ताकि पहले द्वारा सामान्य वर्ग के चुने गए छात्रो को बहार न निकलना पड़े।
अब सवाल यह उठता है की एक दिन में ये अतिरिक्त साईट कहा से आ गयी ? sc-st वर्ग की कुछ छात्राओ को जो जे आर ऍफ़ क्वालीफाई  है और फ़ोर  फर्स्ट क्लास भी हैउन्हें सेलेक्ट नहीं किया गया जबकि यु जी सी का ये निर्देश है की जे आर ऍफ़ को पहले वरीयता दी जायेगी। इन छात्राओ द्वारा इंटरव्यू और सेलेक्शन में पारदर्शिता न होने का आरोप लगाने पर विभाग के कुछ सिक्षाको और कर्मचारियों द्वारा यहाँ तक  कहा गया की जे आर ऍफ़ निकालने से क्या होता है ,जाओ जाकर घास गढ़ो।
धरने पर बैठी छात्राएं और छात्र
तमाम छात्र -छात्राओं का यह आरोप है की इंटरव्यू में बड़े पैमाने पर मनमानी की गयी है न केवल sc-st-obc बल्कि सामान्य वर्ग के छात्रो के साथ भी नाईन्शाफी  हुई है . बहुत से छात्र -छात्राओं द्वारा यह आरोप लगाया गया की इंटरव्यू में उनकी जाती पूछी गयी st वर्ग की एक छात्रा ममता ने जो की काफी गरीब घर से आती है और काफी मेहनत करके अपनी पढाई जारी राखी हुई  है आरक्षित वर्ग के लिए कोटा न लागू होने की वजह से  दुखी होकर विभागाध्यक्ष को आत्मदाह की  लिखित धमकी दी। यह कहना आशान है की आत्मदाह की धमकी देना गलत है ,इससे गलत सन्देश जाएगा , यह कमजोरी का परिचायक है लेकिन उस छात्रा का दर्द महसूस करना कठिन है जो बेरोजगारी और तंगहाली के इस दौर में एक गरीब ,दलित परिवार की होकर भी यहाँ तक पहुची है। यहाँ तक कहा गया की ''सेलेक्सन से क्या होता है गाईड तयं करेगा किसको लेना है और किसको नहीं। विश्वविद्यालय उच्चतर ज्ञान उत्पादन  का केंद्र होता है , हम अयोग्य लोगों को रिसर्च नहीं करायेंगे छाहे वो किसी वर्ग के हो।अयोग्य लोग   m.a.पास कर लिए है इतना ही काफी है। '' आरक्षण के लिए संघर्ष के पीछे यही विचार था किकम्जोर वर्ग के छात्रो को थोडा अतिरिक्त अवसर देकर उन्हें उच्च शिक्षा व् नौकरियों तक पहुचाया जा सके ताकि शिक्षा ,संस्कृति व् अन्य छेत्रो में वो भी अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व कर सके/
स्वाभाविक है आरक्षित श्रेणी में प्रवेश पाए छात्र अन्य छात्रो की अपेक्षा थोड़े कमजोर होंगे ही और इसके एतिहासिक कारण भी है ऐसे में यदि सभी तेज -तर्रार छात्रो को आप रिसर्च करायेंगे तो थोड़े कमजोर छात्रो का क्या होगा ? सामाजिक न्याय की संकल्पना का क्या होगा ?
इस वर्ष पुरे विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वाले छात्रो के साथ बड़े पैमाने पर नाईन्शाफी व् मनमानी की गयी है। लेकिन हिंदी विभाग जो बी एच यूं  . में वामपंथी मूल्यों व् विचारो का केंद्र समझा जाता है , जहां इतने बड़े पैमाने पर कवी ,कहानीकार .,व् आलोचक रहते है वहां अपने ही समाज के दबे -कुचले वर्ग के छात्र-छात्राओं के साथ अन्याय काफी निराश करता है और यह स्पस्ट करता है की ब्राम्हणवादी मूल्य इन तथाकथित वामपंथी शिक्षको के भीतर गहराई से घुसी हुई है।
अब सवाल उठता है की प्रो . बलराज पांडे और प्रो .अवधेश प्रधान जैसे वरिष्ठ शिक्षक जो जन-संस्कृति मंच से भी जुड़े हुए है  क्या उनकी इतनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी की यदि आरक्षित श्रेणी को कोटा देने का निर्देश ऊपर से नहीं भी आया हो तो वो अपनी तरफ से कोशिश  करे और सम्बंधित अधिकारियो से बात करके इनका कोटा लागू  करवाए।
आखिर दो घंटे के धरने में ये कोटा कहाँ से आ गया ?,बढ़कर 62 कैसे हो गयी ?
नाईन्शाफी तो इस व्यवस्था के बुनियाद में ही है और आरक्षण भी वैसे ही है जैसे भीड़ में कुछ सिक्के उछाल कर फेक दिए जाए।