शुरु भईल हक के लड़ईया, कि चला तुहूं लड़ै बरे भईया
कब तक तू सुतबा हो मुंद के नयनवां हो मूंद के नयनवां
कब तक तू ढोइबा हो सुख के सपनवां हो सुख के सपनवां
फ़ूटल बा ललकी किरिनिया, कि चला ……
शुरु भईल हक……
तोहरे पसिनवां से अन्न-धन्न सोनवां हो अन्न-धन्न सोनवां
तोहरा के चूसि-चूसि बढ़ै उनके तोनवां, हो बढ़ै उनके तोनवां
तोहके बा मुठ्ठी भर मकईया, कि चला ……..
शुरु भईल हक……
तोहरे लरिकवन के फ़ौज बनावै हो फ़ौज बनावै
उनके बनुकिया देके तोहरे पे चलावे हो तोहरे पे चलावे
जेल के बतावे कचहरिया, कि चला………
शुरु भईल हक……
तोहरे अंगुरिया पे दुनिया टिकलबा हो दुनिया टिकलबा
बखरा में तोहरे नरका परल बा हो नरका परल बा
उठ भहरावे के ई दुनिया , कि चला…..
शुरु भईल हक……
जनबल बा तोहरे खून के फ़उजिया हो खून के फ़उजिया
खेत कारखनवा के ललकी फ़उजिया हो ललकी फ़उजिया
तोहके बोलावे दिन रतिया, कि चला…..
शुरु भईल हक……
– शम्भू जी
साभार :- परिसर
कब तक तू सुतबा हो मुंद के नयनवां हो मूंद के नयनवां
कब तक तू ढोइबा हो सुख के सपनवां हो सुख के सपनवां
फ़ूटल बा ललकी किरिनिया, कि चला ……
शुरु भईल हक……
तोहरे पसिनवां से अन्न-धन्न सोनवां हो अन्न-धन्न सोनवां
तोहरा के चूसि-चूसि बढ़ै उनके तोनवां, हो बढ़ै उनके तोनवां
तोहके बा मुठ्ठी भर मकईया, कि चला ……..
शुरु भईल हक……
तोहरे लरिकवन के फ़ौज बनावै हो फ़ौज बनावै
उनके बनुकिया देके तोहरे पे चलावे हो तोहरे पे चलावे
जेल के बतावे कचहरिया, कि चला………
शुरु भईल हक……
तोहरे अंगुरिया पे दुनिया टिकलबा हो दुनिया टिकलबा
बखरा में तोहरे नरका परल बा हो नरका परल बा
उठ भहरावे के ई दुनिया , कि चला…..
शुरु भईल हक……
जनबल बा तोहरे खून के फ़उजिया हो खून के फ़उजिया
खेत कारखनवा के ललकी फ़उजिया हो ललकी फ़उजिया
तोहके बोलावे दिन रतिया, कि चला…..
शुरु भईल हक……
– शम्भू जी
साभार :- परिसर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें