बुधवार, 14 नवंबर 2012

जेल से दयामनी बरला की चिट्ठी



झारखंड में ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष की अगुवा नेता और पत्रकार दयामनी बरला की ज़मानत याचिका पर कल सुनवाई नहीं हो सकी। अगली सुनवाई कल यानी 8 नवम्‍बर के लिए टाल दी गई है। कल कई राजनीतिक कार्यकर्ता उनसे जेल में मिलने गए थे। वहां से उन्‍होंने एक चिट्ठी भिजवाई है।

तुम बाहर जाकर संघर्ष करना दयामनी

राज्य के लुटेरे आज सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की नजर में देश के शुभचिंतक हैं. राज्य के संसाधनों को लूटनेवाले, मानवाधिकारों का दमन करनेवालों को सरकार और संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण दे रही हैं और इस धरती के भूमिपुत्र/पुत्री- शुभचिंतकों को अपराधी करार दिया जा रहा है...


मैंने झारखंड की धरती को कभी धोखा नहीं दिया. झारखंड की जनता के सवालों से कभी समझौता नहीं किया. कोयल नदी, कारो नदी और छाता नदी का बहता पानी इसका साक्षी है. इस धरती के मिट्टी-बालू में अंगुलियों से लिखना सीखा. कारो नदी के तट में बकरी चराते-नदी के पानी में डुबकी लगा कर नहाते तैरना सीखा. आकाश के ओस के बूंदों से नहाये घास-फूस और पेड़-पौधों की छाया ने मुझे प्यार दिया - इसका कैसे सौदा कर सकती हूं?
ranchi-dayamani-barla-ranchi
दयामनी बारला
जिस समाज ने मुझे जीना सिखाया, उस समाज के दु:ख दर्द का साथी अपने को कैसे नहीं बनाती? इनके हक-हुकूक-जज्बातों की रक्षा करना भी हमारी (सबों की) जिम्मेवारी है. और जिम्मेवारी निभानेवालों के लिए शायद यही रास्ता है. इनके हिस्से सिर्फ संकट और परेशानी ही लिखी हुई है, यही जिंदगी का सच है. 

मैंने तो सरकार को बताने की कोशिश की थी कि आपका सिस्टम अपने नागरिकों के प्रति-अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन नहीं कर रहा है. रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीणों का पलायन रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों में ही 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है, जिसके लिए अनगड़ा के ग्रामीणों ने जॉब कार्ड मांगने के लिए रैली की. उन पर केस हुआ. उस आंदोलन में मेरे साथ कई साथी उपस्थित थे. सर्वविदित है मनरेगा योजना के घोटाला के बारे में. सच्चाई यही है कि ग्रामीणों को कुछ भी नहीं मिला. लेकिन, हक मांगनेवाले अपराधी करार दिये गये हैं. मैं जेल पहुंच गयी.

नगड़ी में सरकार गलत तरीके से नियम-कानून को ताक पर रख कर 227 एकड़ कृषि भूमि पर कब्जा कर रही है. सरकार को बताने की कोशिश की कि आप गलत कर रहे हैं. कानून और मानवता के आधार पर. खेती की जमीन छोड़ दीजिए और बंजर भूमि पर लॉ कॉलेज और आइआइएम बनाइए, आप का स्वागत है. हमार गुनाह बस इतना ही है. इसी अपराध में हमारे चार साथी पहले ही जेल काट चुके, कई के हाथ टूटे. आज मैं जेल में हूं.

राज्य के लुटेरे आज सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की नजर में देश के शुभचिंतक हैं. राज्य के संसाधनों को लूटनेवाले, मानवाधिकारों का दमन करनेवालों को सरकार और संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण दे रही हैं और इस धरती के भूमिपुत्र/पुत्री- शुभचिंतकों को अपराधी करार दिया जा रहा है. सिदो-कान्हू-बिरसा मुंडा सहित तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को भी यही ताज पहनाया गया था.

क्या सच है, क्या गलत है, मैं नहीं समझ पा रही हूं, लेकिन यही जिंदगी की हकीकत है कि मैं आज पत्थर हो गयी हूं. पूरी दुनिया सो रही है. रात का एक बजा है अभी. बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के महिला वार्ड में बंदी भी सो रहे हैं. मैं अकेली बैठी हूं. जिंदगी में किसी के दु:ख से अपने को अलग नहीं किया. दिन हो या रात, हमेशा लोगों का आंसू पोंछने के लिए रात का अंधकार भी मेरा रास्ता कभी नहीं रोक सका. लेकिन आज मेरे पैर बंधे हुए हैं. हर आंख का आंसू पोछनेवाले हाथ जकड़ दिये गये हैं.

मेरे घर में भाभी की लाश पड़ी हुई है, मेरा परिवार भय से डूबा हुआ है और मैं जेल में निसहाय मूक-बधिर बन कर रह गयी हूं. आंख में आंसू हैं लेकिन बह नहीं पा रहे हैं. आज 6/11/12 को कोर्ट में जाना है. मुझे समझ में आ गया है कि कोई नया केस मेरे ऊपर चढे.गा, जिसके लिए मुझे कस्टडी में लिया जायेगा या रिमांड में या प्रोडक्शन वारंट जारी किया जायेगा. मैंने आज भाभी के अंतिम संस्कार माटी में शामिल होने के लिए कोर्ट को आवेदन दिया है. मुझे नहीं पता अनुमति मिलेगी या नहीं. मेरा भरोसा अब ‘भरोसा’ से भी उठ रहा है.

हां, फैसल दा, बासवी जी, नेलसन, अलोका, प्रवीण, सुशांतो, मीडिया के साथी सहित सभी साथियों (सबका नाम नहीं ले पा रही हूं जो नजदीक में हैं और दूर में हैं) ने मेरा हौसला बुलंद किया है. मेरी आंख के आंसू पोछे हैं.

जेल में बंद कई लोग दुआएं दे रहे हैं कि तुमको यहां नहीं, बाहर रह कर काम करना है. मैं कोशिश करूंगी अपने को उसी तरह खड़ा रखने की, जिस तरह नदी, नाला, पहाड़, जंगल, गांव-गांव में खड़ा होकर नारा बुलंद करते रहे हैं. हम अपने पूर्वजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे. आशा है आज का, अभी का यह क्षण ही जिंदगी का अंतिम पड़ाव नहीं है. जब तक कोयल, कारो और छाता नदी की धराएं बहती रहेगी, जिंदगी की जंग जारी रहेगी.

आपकी बहन
दयामनी बरला
6 नवम्बर 2012, बिरसा मुंडा, केन्द्रिय काराग्रह, रांची (झारखंड)

शनिवार, 10 नवंबर 2012

बी एच यूं में ''धर्म की अवधारणा और दलित चिंतन '' पर एक दिवसीय गोष्ठी :


         पिछले 08 नवम्बर को राधाकृष्णन  सभागार में दो सत्रों में ''धर्म किअवाधाराना और दलित चिंतन ''पर एकं दिवसीय गोष्ठी सम्पन्न हुई , पहले सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय से आये हुए सूरज कुमार थापा ने  कहा की दलितों की मुक्ति किसी भी धर्म में संभव नहीं है क्योकि धर्म खुद शोषण पर आधारित है इसलिए उन्हें अपनी मुक्ति सबकी मुक्ति में देखना होगा और सांस्कृतिक रूप से वैज्ञानिक चेतना एवं समाजवादी विचारधारा अपनाना  चाहिए . उन्होंने रंगनायकम्मा की पुस्तक ''बुद्ध काफी नहीं,अम्बेडकर भी काफी नहीं , मार्क्स जरूरी है '' का जिक्र किया .
इस सत्र के मुख्य वक्ता  कँवल  भारती   ने वर्तमान व्यवस्था में दलित की उपेक्षा क्रन्तिकारी विचार रखा . कहा की दलित चिंतन ,चिंतन का तीसरा स्कूल है .और आज दलित ,दलित मुद्दे पर ही नहीं वह साम्राज्यवाद ,पूजीवाद ,एवं किसी भी मुद्दे पर बोल सकते है।
अपने अध्यक्षीय व्यक्तव्य में चौथीराम यादव ने कहा कबीर अपने समय में मुल्लाओ एवं पंडितो से जबरदस्त टक्कर ली ,और मेहनतकस जनता से कहा की इनसे दूर रहे।
आखिरी सत्र में मुख्य अतिथि तुलसी राम ने कहा की ऋग्वेद धार्मिक ग्रन्थ न होकर उस समय के सामाजिक जीवन के दस्तावेज है .,जिसमे स्पस्ट तौर पर लिखा है की हम अग्नि की पूजा इसलिय करते है क्योकि वह हमारे दुश्मनों को जलाने का काम करती है , गौतम बुद्ध कैसे अपने तर्कों द्वारा ब्राह्मणवाद की धज्जियाँ उडाई .,उनके वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया इसे बहुत ही रोचक तरीके से बताया ..  अंत में दर्शन विभाग के प्रो . पि0 बागड़े     ने कहा आंबेडकर और मार्क्स को ही साथ लेकर भारत में कोई भी आगामी सामाजिक परिवर्तन का कार्य किया जा सकता है।

जय भीम कामरेड !

-शैलेश कुमार

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

Hkkjr dk }UnkRed HkkSfrdoknh fo”ys’k.k 2017 dh ekvksoknh Økafr ds ifjisz{; esa
ftl fnu dkyZ ekDlZ us nk”kZfudksa dks pqukSrh nsrs gq, ;g ?kks’k.k dh fd vc rd nk”kZfudksa us fo”o dh flQZZ O;k[;k dh gS( tc fd t:jr bls cnyus dh gSA mlh fnu ls eglwl dh tkus yxh fd nqfu;k dks ,d ,sls n”kZu dh t:jr gS( tks cnyko o budykc yk;sA nk”kZfud {ks= esa ekDlZokn ,d cgqr cM+h lQyrk o nk”kZfud miyfC/k ds :Ik esaa gekjs lkeus [kM+k gqvkA bl izdkj fodYi ghurk dh fLFkfr dk lekiu o var gqvk ij gesa le>uk pkfg, fd dksbZ Hkh n”kZu vius vki eas lEiw.kZ ugha gksrkA ns”k dky o ifjfLFk;ksa ds eqrkfcd blesa cnyko LokHkkfod gSA nfd;kuql o iqjk.kiaFkh ekDlZoknh;ksa o okei{kh vkjksi }kjk bl cnyko dks lalks/ku okn] izfr Økafroknh vFkok iqumRFkZuoknh dgdj [kkjht djuk uk le>h iw.kZ igy dneh gksxhA
      1917 dh :lh vDVwcj lektoknh Økafr ek= ekDlZ oknh n”kZu ds vk/kkj ij ugha gqbZ( cfYd :l dh HkkSfrd oknh lkekftd vkfFkZd lajpuk ds eqrkfcd ysfuuokn dh t:jr iM+hA :lh Økafr dk nk”kZfud vk/kkj ekDlZokn ysfuuokn FkkA Bhd blh izdkj 1949 dh phuh Økafr ls ekDlZokn ysfuuokn ds lkFk ekvksokn tqM+ x;kA vkSj ekDlZokn&ysfuuokn&ekvksokn cuk( tks phuh uo&tuoknh x.krkaf=d Økafr dk nk”kZfud vk/kkj cukA blh rjg Hkkjr esa 2017 dh ekvksoknh Økafr dk vk/kkj flQZ ekDlZokn] ysfuuokn] ekvksokn ugha gksxk( cfYd Hkkjrh; lanHkZ ds eqrkfcd blesa xka/khokn Hkh tqM+ tk;sxkA og xka/kh;u&ekvksokn cu tk;sxk( tks ,d u;k n”kZu gksxkA ;gh ugha Økafr ds ?kVd vkSj eq[; “kfDr;k¡ o gjkoy n”rs Hkh cny tk;saxsA :lh Økafr loZgkjk oxZ dh] phuh Økafr ogk¡ ds fdlkuksa us] ij Hkkjrh; Økafr esa ,slk ugh gksxk( D;ksafd Hkkjr dh HkkSfrdoknh lkekftd lajpuk :l vkSj phu ls fHkUu gSA bl ns”k dh tula[;k esa Nk= vkSj ukStokuksa dk vuqikr vk/kk ls vf/kd vFkkZr 55 izfr”kr gS( tks i<+s fy[ks vkSj le>nkj gSaA ;s Nk= vkSj ukStoku taxy vkSj lery ls “kgj vkSj egkuxj esa vk x;s gSaA t:jr bl ckr dh gS fd bu Nk= ukStokuksa dks ekDlZokn] ysfuuokn o ekvksokn dh f”k{kk nh tk;A buds le{k lcls cM+h leL;k csjkstxkjh gS( blhfy, Hkkjrh; Økafr dk dsUnz fcUnw jkstxkj gksxk] Hkwfe vFkok tehu ugha gksxhA u;hih<+h Nk= vkSj ukStokuksa dks rks NksM+ nhft;s( xk¡o dk fdlku Hkh [ksrh djuk ugha pkgrk] D;ksafd fd [ksrh esa iSlk ugha gS vkenuh ugha gS] ykHk ugh gS] Je vkSj esgur cgqr T;knk gS] blhfy, [ksrh mis{kk vkSj vieku dk /ka/kk gks x;k gSA Nk= vkSj ukStoku Hkh [ksrh djuk vieku le>rs gSa] blhfy, Økafr dk dke [ksrh dks lEeku dk /ka/kk cukuk Hkh gSA Økafr ds ckn gesa ,slk dqN djus dh t:jr gksxh rkfd yksx dgs fd ge ukSdjh NksM+ ds [ksrh djsaxsaaA vkt Hkh gekjh jk’Vªh; vk; esa [ksrh dk ;ksxnku lcls vf/kd gSA ;g 69 izfr”kr yksxksa dks jkstxkj ns jgk gSA fQj Hkh bls lEeku izkIr ugha gSA m|ksx /ka/ks ek= 6 izfr”kr yksxksa dks gh jkstxkj iznku dj jgs gSA lsok{ks= ek= 25 izfr”kr vkcknh dks gh jkstxkj eqgS;k djk jgk gS] ckotwn m|ksx /ka/kksa o lsok{ks= dks lEeku izkIr gSA ;g bl ns”k dh cgq la[;d vkcknh dk vieku gSA Økafr blfy, Hkh t:jh gks xbZ gSA
      loky ;g Hkh fd ftl /ka/ks esa 69 Qhlnh vkcknh yxh gqbZ gS( jk’Vªh; vk; esa mldk ;ksxnku flQZ 14 izfr”kr dSls gqvk gS\ vkSj ftl dke esa ;kuh lsok{ks= tks flQZ 25 izfr”kr yksx dks jkstxkj iznku dj jgk gS jk’Vªh; vk; esa mldk ;ksxnku 58 izfr”kr dSls gks x;k\ rFkk 6 izfr”kr jkstxkj nsus okys m|ksx&/ka/kksa dk ;ksxnku 28 izfr”kr dSls gks x;k\ Økafr bl fy, Hkh fd ;g vFkZ”kkL= ugh8 vuFkZ “kkL= gSA vkSj eueksgu rFkk eksuVsd flag ljh[ks yksx vuFkZ”kkL=h gaSA
      gekjs ns”k ds fdlkukas us bruk vf/kd vUu mitk;k fd vukt j[kus ds fy, txg ugha gSA vukt lM+ jgk gSA fQj Hkh bl ns”k dh efgyk;sa] cPps etnwj] fdlku dqiksf’kr gaSA fQj 2017 dh Økafr D;ksa ugha gS \ iz”u ;g Hkh fd vk/kh oLrq;as fu;a=.k esa vkSj vk/kh vfu;af=r D;ksa\ fdlkuksa ds mRikn pkoy] phuh] puk] xsgw¡ vxj fu;af=r( rks fQj m|ksx ifr;ksa ds mRikn cht] [kkn] dhVuk”kd] nok] diM+k] lkcqu] isVªksy] fMty] dkj] eksVj ij fu;a=.k D;ksa ugha\ Økafr blfy, Hkh rkfd uo tuokn lektokn o lkE;okn dh fn”kk esa igy dneh gksA
      gekjs ns”k ds dE;qfuLV Hkkjr ds lekftd HkkSfrdoknh rkus ckus dh vuns[kh o vogsyuk djrs gq, Hkkjr dh tkfr O;oLFkk dks le>us esas foQy jgs o oxZ ij fo”ks’k tksj nsrs gSA mUgksaus bl ckr dks le>k gh ugh fd Hkkjr dk lekt ,d cgqtkfr;sa o cgqjk’Vªh; lekt gS( vkSj ;gh bl ns”k dk ,sfrgkfld lkekftd] jktuhfrd] lkaLd`frd HkkSfrdokn gSA blls iSnk la?k’kZ gh oxZ la?k’kZ gSA oxZ rks ek= ,d vkfFkZd bdkbZ gksrk gS ij tkfr esa vkfFkZd ds lkFk&lkFk lkekftd] lkaLd`frd] jktuhfrd ?kVd fo”ks’k rkSj ij dke djrs gSA lkaxBfud o jktuSfrd n`f’V ls Hkh( tkfr dk egŸo( oxZ dh vis{kk vf/kd nenkj fl) gks jgk gSA ftldk lkezkT;oknh] lkearh o ctqZok jktuhfrd ny rks Hkjiwj Qk;nk mBk jgs gSA ij Økafrdkjh okeiafFk;ksa dh bl ijs Bksl o Li’V n`f’Vdks.k D;kaas ugha vk ik jgk gS\ ftldk mUgsa [kkfe;ktk Hkqxruk iM+ jgk gSA bldk Økafrdkjh okeiaFkh;ksa }kjk lkaxBfud ykHk mBk;k tkuk pkfg,A ftl {ks=  esa ftl tkfr dh ckgqY;rk gks( ml {ks= esa mlh tkfr ds dk;ZdrkZ dk usr`Ro gksuk pkfg,A
      ;g ugha Hkwyuk pkfg, fd vyx&vyx pkfc;ksa ls vyx&vyx rkys [kqyrs gaSA lgh ek;us eas dgk tk, rks tkfr;k¡ Økafr esa gj utfj;s ls lgk;d gSaA ck/kd gksus dk iz”u gh iSnk ugha gksrk] gkykafd oxZ dh vo/kkj.kk dk Hkh Økafr ds utfj;s ls dkQh egRo gSA ckotwn Hkkjr esa iawthifr oxZ dks vxj NksM+ fn;k tk;s rks mruk izHkkoh ugha gS] njvly Hkkjr esa tkfr vkSj oxZ leku gh gS tkfr] o.kZ O;oLFkk dk gh vax vkSj lksiku gS rFkk o.kZ vkSj oxZ ,d gh pht gS( buds chp fo”ks’k varj ugha gSA
      2017 Hkkjr esa ,d ckr r; gS fd Økafr dE;qfuLVksa ds usr`Ro esa gh gksxh] cs”kd dE;qfuLVksa ds Hkh vius dbZ jktuhfrd ny o laxBu gS] elyu lhihvkbZ lhih,e] lh ih vkbZ ,e ,y vkSj lhih vkbZ0 ekvksoknh- lh ih bZ ekvksoknh ftls turk dk fo”okl izkIr gS( vkSj Økafr dkjh le>k tkrk gSA tks lgh Hkh gS bu ij vfrokeiaFkh gksus dk vkjksi&izR;kjksi tkjh gS ij nqfu;k esa dE;qfuLVksa dh ,d gh igpku o dlkSBh gksrh gS( vkSj og ;g fd mUgs ges”kk gjoDr] gj gkyr esa Økafr utj vkrh gS- vkSj ftUgsa Økafr utj ugha vkrh vFkok “kwU; fn[kkbZ iM+rh gS os fu%lansg dE;qfuLV ugha gS( vkSj ftUgsa Økafr fn[kkbZ iM+rh gS( os vlyh dE;wfuLV gSaA Økafrdkjh o Økafroknh dE;wfuLVksa ds chp ,drk t:jh gSA vkt dh ifjfLFkfr;ksa esa ;g fo”ks’k Lykxsu gS **Økafrdkfj;ksa dh ,drk( Økafr dk jkLrk** pkgs os Økafrdkjh dE;wfuLV fdlh Hkh jktuhfrd ny vFkok la?kVu esa gksaA
      tgk¡ rd tu laxBuksa dk loky gS( rks tu laxBu ls dgk¡ dksbZ budkj djrk gSA ij ;g vkjksi cscqfu;kn gS fd Økafrdkjh dE;qfuLVksa o Økafrokfn;ksa ij gfFk;kj gkoh gSA vFkok l”kL= Økafr ,d gkSok gSA bl loky dk tokc gesa bl vkyksd esa ns[kuk pkfg, fd Hkkjrh; lkezktoknh nyky o jkT; ds ikl fdrus gfFk;kj gS\ Hkkjrh; jktk ftldk oxZ pfj=  QkflLV gS( fdrus cM+s iSekus ij gfFk;kjksa dk vk;kr dj jgk gSA vr% gfFk;kjksa ds gkoh gksus ds rdZ esa dksbZ ne[ke utj ugha vkrkA ;g cqtqZokiu o ;FkkfLFkfr dk;e j[kus okyksa dk HkM+kl ek= gS( tcfd Hkkjrh; laLd`fr l”kL= Økafr dh laLd`fr jgh gS] blhfy, lhihvkbZ ekvksoknh vkSj Økafrdkjh [kses esa Hkh ,sls egkuqHkkoksa dh dksbZ deh ugha ftUgsa Økafrutj ugha vkrhA ftudh rqyuk vki dkmLdh] VªkVLdh;] esa“ksfodksa vFkok dksfearkx ls dj ldrs gSaA tks nfd;kuql o iqjk.kiaFkh ekDlZoknh gSA tks nh?kZ dkyhu tu ;q) ds uke ij Økafr dks ekDlZokn] ysfuu okn o ekvksokn ds Dykfldy <kaps ls ckgj ugha fudkyus nsuk pkgrs gSaA Økafr ds fy, Hkkjr esa vk;s lkekftd HkkSfrd oknh cnyko ds vuq:Ik j.kuhfr] dk;Zuhfr o dwVuhfr dk uke lqurs gh fcnd tkrs gSA tks vHkh rd ugha le> ik jgs fd 2017 Økafr nwj dh dkSM+h vFkok fnok Loku ugha( cfYd ,d rY[k lPpkbZ gSA
      nh?kZ dkyhu tu;q) rks Bhd gS( ij bldh dksbZ x.kuk] dksbZ lhek] dksbZ vuqeku gS Hkh vFkok ugha] nl o’kZ] chl o’kZ] rhl o’kZ fdrus fnu \ phu esa 1921 esa dE;wfuLV ikVhZ dh LFkkiuk gqbZ 1949 esa Økafr lEiuk gks xbZ :l esa 1898 dE;wfuLV ikVhZ dh LFkkiuk gqbZ 1917 esa ogk¡ Hkh Økafr lEiUu gks xbZA Hkkjr viokn D;ksa gS\ dgh blfy, rks ugha fd dE;qfuLVksa dh Økafr esa dksbZ vfHk:fp gS gh ugha( vkSj oss ek= jokuk iqjh esa yxs gq, gSaA ;gh Hkkjr dk bfrgkfld HkkSfrdokn gSA
      bl ns”k esa dE;wfuLVksa ds chp ;g cgl dk eqÌk cuk gqvk gS fd ns”k esa lektoknh Økafr gksxh] uo tuoknh Økafr gksxh] ;k fQj lkE;oknh Økafr gksxh\ bl ns”k dh fo”ks’k ifjfLFkfr;ksa ds eÌsutj ;gk¡ rhuksa Økafr ;k ,d lkFk gksaxhA ;gk¡ rks taxyksa esa vkt Hkh taxy ;qx ;kuh lkE;okn lekurk gSA lery esa tks tehu Hkwfe gS og Hkwfeghu dks fn;k tk;sxk ;kuh uotuoknh Økafr gksxh rFkk “kgjksa esa ?kksj iwathokn gS( ;kfu lektoknh Økafr gksxhA
      gesa ;g ugha Hkwyuk pkfg, fd gekjk eq[; nq”eu lkezkT;okn gS lkekzT;okn iwathokn dh pje voLFkk gS vFkkZr lektoknh Økafr gksuh pkfg, vFkkZr jksth&jkstxkj o jksVh dh yM+kbZ ;kuh lektokn dh yM+kbZ] lezkT;oknh rFkk muds nyky( lhihvkbZ ekvksoknh dks viuk eq[; nq”eu ekurs gSa( cs”kd Hkkjr ,d lektoknh Økafr ds nkSj ls xqtjus okyk gSA

-कवि आत्मा  ( स्वतंत्र लेखक )