रविवार, 23 फ़रवरी 2014

''मेरी पहली कविता ''

    ''चौराहे''

चौराहे
आखिर कहाँ ले जाते है
किस शहर?
किस नगर?
किस गाँव?
या ले जाते हैं उन परिदृश्यों में
जहाँ रोज घटती हैं हृदय विदारक घटनाएं
रोज होती हैं नृशंस हत्यायें,बलात्कार,नरसंहार
रोज बनते हैं नये बाथे,अरवल,खैरलांजी, और मुज़फ्फरनगर !

या फिर ले जाते हैं  वहाँ
जहाँ
सोने,हीरे,लोहे,कोयले,और एलुमिनियम
कि ख़ान
अपने सीने में लिए
धरती सिसकती है
और उजड़ जाते हैं
गाँव के गाँव !

और अंततः
वहाँ भी ले  जाते हैं
जहाँ
अपने अस्तित्व के लिए
लडते-बढ़ते गुरिल्ले
एक नये साम्य समाज का सपना लिए
कर रहें हैं निर्माण
अपनी अलग संस्कृति का
इस तथाकथित सभ्य समाज से इतर
वे गढ़ रहें हैं अपना बस्तर !

                                          -----  ''सिद्धांत''

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