हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार , हंस पत्रिका के संपादक तथा हिंदी साहित्य के स्तम्भ माने जाने वाले राजेंद्र यादव जी का गत सोमवार निधन हो गया ।
मशाल सांस्कृतिक मंच उनको श्रद्धांजली अर्पित करता है ।
राजेंद्र यादव को क्रांतिकारी कवि वरवर राव की श्रद्धांजली
लगभग 30 साल से चले आ रहे हमारे बीच के संवाद को राजेंद्र यादव ने मेरे नाम एक लंबा पत्र लिखकर हमेशा के लिए बंद कर दिया। मैंने उन्हें जवाब दिया था और पिछले दिनों हुए विवाद और बहस में अपने दो पत्रों से अपनी अवस्थिति को सभी के सामने रखा भी था। इसके बाद उन्होंने मुझे एक लंबा पत्र लिखा और ‘हंस’ में संपादकीय भी लिखा। इसे आगामी महीने में ‘अरूणतारा’ में इसका तेलुगू अनुवाद हम प्रस्तुत करेंगे। यह सब इसलिए कि राजेंद्र यादव से हमारी उम्मीदें हमेशा बनी रहीं। हमारे बीच उनका नहीं रहना एक भरी हुई जगह के अचानक ही खाली हो जाने जैसा है, हम सभी के लिए एक क्षति है।
1980 के दशक में जब आंध्र प्रदेश में दमन का अभियान जोरों पर था और सांस्कृतिककर्मी से लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक को बख्शा नहीं जा रहा था उस समय की ही बात है राजेंद्र यादव ‘हंस’ को लेकर आए। उसी दौरान उन्होंने पत्र व्यवहार से हमसे संपर्क किया। हमारी कविताएं भी उन्होंने प्रकाशित कीं। राजेंद्र यादव ने ‘हंस’ को प्रेमचंद की परंपरा और विरासत को आगे ले जाने के वादे और नारे के साथ प्रकाशित किया था। शायद उनकी यही दावेदारी उनको विवाद के घेरे में ले आती रही। उनकी यही दावेदारी मुझे उनसे जोड़ती थी और इसी के तहत विवाद भी बनता रहा।
2002 तक आंध्र प्रदेश में राजकीय दमन अपने घिनौने रूप में सामने आ चुका था और गुंडा-गिरोहों द्वारा सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की खुलेआम हत्याएं की जा रही थीं। मेरे ऊपर पर भी इसी तरह के खतरे थे। मैं थोड़े समय के लिए उस दिल्ली आया। 2002 में ही राजेंद्र यादव से पहली मुलाकात हुई। उनकी तमाम विवादास्पद हरकतों के बावजूद मेरी उनसे एक उम्मीद जो पहले से बनी हुई थी, इस मुलाकात के बाद भी कायम रही। हैदराबाद वापस जाने पर उनसे संपर्क नहीं टूटा। यह उन पर मेरा भरोसा ही था कि पिछले दिनों हुए आयोजन के लिए जो निमंत्रण पत्र भेजा उसमें अन्य वक्ताओं का नाम न होने के बावजूद इसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद बने विवाद के बाद मुझे उनके साथ संवाद टूट जाने की उम्मीद नहीं थी और उन्होंने लंबा पत्र लिखा भी।
एक साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी पूरे समाज को प्रभावित करता है। राजेंद्र यादव का नहीं रहना हिंदी साहित्य के साथ साथ पूरे साहित्य जगत की भी क्षति है। साहित्य के मोर्चे पर जीवन के अंतिम क्षण तक लगातार सक्रिय रहने वाले मित्र राजेंद्र यादव को विनम्र श्रद्धांजली और नमन!
राजेंद्र यादव से हमारी उम्मीदें हमेशा बनी रहीं: वरवर राव
राजेंद्र यादव को क्रांतिकारी कवि वरवर राव की श्रद्धांजली
लगभग 30 साल से चले आ रहे हमारे बीच के संवाद को राजेंद्र यादव ने मेरे नाम एक लंबा पत्र लिखकर हमेशा के लिए बंद कर दिया। मैंने उन्हें जवाब दिया था और पिछले दिनों हुए विवाद और बहस में अपने दो पत्रों से अपनी अवस्थिति को सभी के सामने रखा भी था। इसके बाद उन्होंने मुझे एक लंबा पत्र लिखा और ‘हंस’ में संपादकीय भी लिखा। इसे आगामी महीने में ‘अरूणतारा’ में इसका तेलुगू अनुवाद हम प्रस्तुत करेंगे। यह सब इसलिए कि राजेंद्र यादव से हमारी उम्मीदें हमेशा बनी रहीं। हमारे बीच उनका नहीं रहना एक भरी हुई जगह के अचानक ही खाली हो जाने जैसा है, हम सभी के लिए एक क्षति है।
1980 के दशक में जब आंध्र प्रदेश में दमन का अभियान जोरों पर था और सांस्कृतिककर्मी से लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तक को बख्शा नहीं जा रहा था उस समय की ही बात है राजेंद्र यादव ‘हंस’ को लेकर आए। उसी दौरान उन्होंने पत्र व्यवहार से हमसे संपर्क किया। हमारी कविताएं भी उन्होंने प्रकाशित कीं। राजेंद्र यादव ने ‘हंस’ को प्रेमचंद की परंपरा और विरासत को आगे ले जाने के वादे और नारे के साथ प्रकाशित किया था। शायद उनकी यही दावेदारी उनको विवाद के घेरे में ले आती रही। उनकी यही दावेदारी मुझे उनसे जोड़ती थी और इसी के तहत विवाद भी बनता रहा।
2002 तक आंध्र प्रदेश में राजकीय दमन अपने घिनौने रूप में सामने आ चुका था और गुंडा-गिरोहों द्वारा सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की खुलेआम हत्याएं की जा रही थीं। मेरे ऊपर पर भी इसी तरह के खतरे थे। मैं थोड़े समय के लिए उस दिल्ली आया। 2002 में ही राजेंद्र यादव से पहली मुलाकात हुई। उनकी तमाम विवादास्पद हरकतों के बावजूद मेरी उनसे एक उम्मीद जो पहले से बनी हुई थी, इस मुलाकात के बाद भी कायम रही। हैदराबाद वापस जाने पर उनसे संपर्क नहीं टूटा। यह उन पर मेरा भरोसा ही था कि पिछले दिनों हुए आयोजन के लिए जो निमंत्रण पत्र भेजा उसमें अन्य वक्ताओं का नाम न होने के बावजूद इसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद बने विवाद के बाद मुझे उनके साथ संवाद टूट जाने की उम्मीद नहीं थी और उन्होंने लंबा पत्र लिखा भी।
एक साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी पूरे समाज को प्रभावित करता है। राजेंद्र यादव का नहीं रहना हिंदी साहित्य के साथ साथ पूरे साहित्य जगत की भी क्षति है। साहित्य के मोर्चे पर जीवन के अंतिम क्षण तक लगातार सक्रिय रहने वाले मित्र राजेंद्र यादव को विनम्र श्रद्धांजली और नमन!