Dhruv Gupt
एक दिन सपनों का राही चला जाए सपनों से आगे कहां !
हिंदी फिल्मों की गंभीर और शास्त्रीय आवाज़ 94-वर्षीय मन्ना डे उर्फ़ प्रबोध चन्द्र डे अब नहीं रहे। गंभीर बीमारी के बाद बैंगलोर के एक अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। मोहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, मुकेश और किशोर कुमार के समकालीन मन्नाडे की अपनी शास्त्रीयता और विविधता के कारण फिल्मी गायन में एक अलग पहचान रही थी। लगभग साठ साल लंबे फिल्म कर्रिएर में मन्ना दा ने सैकड़ों कालजयी गीतों को अपना स्वर दिया। जीवन के अंतिम दिनों तक वे गायन के क्षेत्र में सक्रिय थे। उनके गाए कुछ अमर गीत हैं - ऊपर गगन विशाल, दिल का हाल सुने दिलवाला, ये इश्क़ इश्क़ है इश्क़ इश्क़, न तो कारवां की तलाश है, ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन, तू है मेरा प्रेम देवता, ये रात भींगी भींगी ये मस्त फिजाएं, प्यार हुआ इक़रार हुआ है प्यार से फिर क्यूं डरता है दिल, आजा सनम मधुर चांदनी में हम-तुम, तू छुपी है कहां मैं तड़पता यहां, तू प्यार का सागर है तेरी एक बूंद के प्यासे हम, ज़िंदगी कैसी है पहेली हाय, सुर ना सजे क्या गाऊं मैं, चलत मुसाफिर मोह लिया रे, आयो कहां से घनश्याम, नदिया चले चले रे धारा, तुम्हें सूरज कहूं या चंदा, पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, ऐ भाई ज़रा देख के चलो, तुम बिन जीवन कैसे बीता, अब कहां जाएं हम तू बता ऐ ज़मीं, झूमता मौसम मस्त महीना, यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी, ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे, कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या, जीवन से लंबे हैं बंधु इस जीवन के रस्ते, एक चतुर नार करके सिंगार, उमरिया घटती जाए रे, नैन मिले चैन कहां, लागा चुनरी में दाग, किसने चिलमन से मारा नज़ारा मुझे, ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं, हंसि हंसि पनवा खिअवले बेइमनवा, झनक झनक तोरी बाजे पायलिया आदि। इनकी गंभीर और भावुक आवाज़ में बच्चन जी की 'मधुशाला' सुनना एक अद्वितीय अनुभव है। फिल्म संगीत में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2005 में पद्मभूषण से और 2007 में सर्वोच्च फिल्म सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा है।
मन्ना दा को हमारी अश्रुपूर्ण श्रधांजलि ! वे अपने गीतों और हमारी स्मृतियों में सदा जीवित रहेंगे !
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