शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

पुण्यतिथि / साहिर लुधियानवी


मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मेरी जवानी है !

साहिर लुधियानवी को शब्दों और संवेदनाओं का जादूगर कहा जाता है। वे प्रगतिशील चेतना के ऐसे क्रांतिदर्शी शायर थे जिन्होंने जीवन के यथार्थ और कुरूपताओं से बार-बार टकराने के बावजूद शायरी के बुनियादी स्वभाव - कोमलता और नाज़ुकबयानी का दामन नहीं छोड़ा। ग़ज़लों और नज़्मों की भीड़ में भी उन्हें एकदम अलग से पहचाना जा सकता है। अदब के साथ उन्हें हिंदी / उर्दू सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार का दर्ज़ा भी हासिल है। ढेरों कालजयी फिल्मों, जैसे - धर्मपुत्र, मुनीम जी, जाल, पेइंग गेस्ट, धूल का फूल, हम हिंदुस्तानी, प्यासा, सोने की चिड़िया, फिर सुबह होगी, ताजमहल, मुझे जीने दो, हम दोनों, बरसात की रात, नया दौर, दिल ही तो है, वक़्त, बहू बेगम, शगुन, लैला मजनू, गुमराह, काजल, चित्रलेखा, हमराज़, दाग, इज्ज़त, कभी कभी आदि के लिए लिखे उनके गीत कभी भुलाये न जा सकेंगे। पुण्यतिथि पर इस महान शायर को खेराज़-ऐ-अक़ीदत , उनकी फिल्म 'साधना ' की एक कालजयी नज़्म के साथ !

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा दुत्कार दिया

तुलती है कभी दिनारों में, बिकती है कभी बाजारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो बंट जाती है इज्ज़तदारों में
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

मर्दों ने बनाई जो रस्में उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के जिन्दा जलने को कुर्बानी और बलिदान कहा
अस्मत के बदले रोटी दी और उसको भी एहसान कहा
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां औरत के लिए रोना भी ख़ता
मर्दों के लिए लाखों सेज़ें औरत के लिए बस एक चिता
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

औरत संसार की क़िस्मत है फ़िर भी तक़दीर की हेठी है
अवतार पयम्बर जनती है फ़िर भी शैतान की बेटी है
ये वह बदक़िस्मत मां है जो बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....
— with Sahitya Akademi.
 
 
Photo: पुण्यतिथि / साहिर लुधियानवी 
मैं पल दो पल का शायर हूं पल दो पल मेरी जवानी है !

साहिर लुधियानवी को शब्दों और संवेदनाओं का जादूगर कहा जाता है। वे प्रगतिशील चेतना के ऐसे क्रांतिदर्शी शायर थे जिन्होंने जीवन के यथार्थ और कुरूपताओं से बार-बार टकराने के बावजूद शायरी के बुनियादी स्वभाव - कोमलता और नाज़ुकबयानी का दामन नहीं छोड़ा। ग़ज़लों और नज़्मों की भीड़ में भी उन्हें एकदम अलग से पहचाना जा सकता है। अदब के साथ उन्हें हिंदी / उर्दू सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार का दर्ज़ा भी हासिल है। ढेरों कालजयी फिल्मों, जैसे - धर्मपुत्र, मुनीम जी, जाल, पेइंग गेस्ट, धूल का फूल, हम हिंदुस्तानी, प्यासा, सोने की चिड़िया, फिर सुबह होगी, ताजमहल, मुझे जीने दो, हम दोनों, बरसात की रात, नया दौर, दिल ही तो है, वक़्त, बहू बेगम, शगुन, लैला मजनू, गुमराह, काजल, चित्रलेखा, हमराज़, दाग, इज्ज़त, कभी कभी आदि के लिए लिखे उनके गीत कभी भुलाये न जा सकेंगे। पुण्यतिथि पर इस महान शायर को खेराज़-ऐ-अक़ीदत , उनकी फिल्म 'साधना ' की एक कालजयी नज़्म के साथ !

औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया 
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा दुत्कार दिया 

तुलती है कभी दिनारों में, बिकती है कभी बाजारों में 
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में 
ये वो बेईज्ज़त चीज़ है जो बंट जाती है इज्ज़तदारों में 
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

मर्दों ने बनाई जो रस्में उनको हक़ का फ़रमान कहा 
औरत के जिन्दा जलने को कुर्बानी और बलिदान कहा 
अस्मत के बदले रोटी दी और उसको भी एहसान कहा 
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवां औरत के लिए रोना भी ख़ता 
मर्दों के लिए लाखों सेज़ें औरत के लिए बस एक चिता 
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा 
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

औरत संसार की क़िस्मत है फ़िर भी तक़दीर की हेठी है 
अवतार पयम्बर जनती है फ़िर भी शैतान की बेटी है 
ये वह बदक़िस्मत मां है जो बेटों की सेज़ पे लेटी है
औरत ने जनम दिया मर्दों को .....

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