शनिवार, 4 अगस्त 2012

साहित्य सिनेमा

'करबला' बंद न होती तो तमाशा होता

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धार्मिक विरोध से बंद हुई शूटिंग
'करबला' नाम से फिल्म बनाने का एलान क्या हुआ, विभिन्न शहरों से मुसलमान निकल पड़े उसका विरोध करने. यह सोचे बिना कि पहले यह जानकारी प्राप्त करें कि फिल्म के डायरेक्टर और प्रोडयूसर का इस प्रकार की फिल्म का एलान करने के पीछे मकसद क्या है.
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कई दिनों से फेसबुक और दूसरी सोशल मीडिया साइट्स पर चल रहा यह मामला आखिर सड़कों पर आ गया. कल और आज लखनऊ और कुछ दूसरे शहरों में फिल्म करबला बनाने वालों के खिलाफ प्रदर्शन किए गए और किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि तीन दिन पहले ही फिल्म के प्रोडयूसर डाक्टर नसीम और डायरेक्टर करीम शेख मुम्बई सीआईडी ब्रांच में जाकर लिखित रूप में यह दे चुके हैं कि वे इस फिल्म को बन्द कर रहे हैं.

लखनऊ में हुए प्रदर्शन में विख्यात कामेडी एक्टर कादर खान का इस फिल्म से नाम जुड़े होने के कारण उनके खिलाफ भी नारे लगाए गए. इस विषय में आरएनआई ने कादर खां से फोन पर बात की तो उन्होंने माना कि तीन दिन पहले फिल्म बन्द करने का फैसला लिया जा चुका है. उन्होंने कहा कि लोग हमसे पूछते हैं कि फिल्म में इमाम हुसैन (मौहम्मद साहब के पौत्र) का रोल कौन करेगा. क्या हम में इतनी हिम्मत है कि इमाम हुसैन या अहलेबैत (पैगम्बर मौहम्मद के घर के लोग) में से किसी का रोल करें. हममें तो इतनी भी हिम्मत नहीं कि जिन लोगों ने अपनी आंखों से इन पाक हस्तियों को देखा है, उनका रोल करें.

फिर फिल्म करबला बनाने के पीछे आपका आशय क्या था, के जवाब में कादर खान ने कहा कि आज के बच्चों को पता ही नहीं कि कुरबानी और शहादत क्या होती है. हमें लगा कि लोगों को कुरबानी और शहादत के मतलब पता होना चाहिए. कोई किसी को गोली मार दे तो कहते हैं कि शहीद हो गया. कोई गाड़ी के नीचे आ कर मर गया तो कहते हैं कि शहीद हो गया. क्या यह शहादत है? यदि कोई हक और इंसाफ के लिए खड़ा हो और उसे मार दिया जाए, यह शहादत होती है. हम करबला नाम की फिल्म में इस अंतर को दिखाना चाहते थे. कहीं पर भी इमाम हुसैन की उस अज़ीम कुरबानी और उनकी शहादत को दिखाने का विचार नहीं था.

अगर ऐसा है तो आप ने फिल्म बन्द क्यों कर दी, पर कादर खान ने बताया कि, हम controversy नहीं चाहते, हम दुनिया के सामने तमाशा क्यों बनें.

प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि फिल्म से जुड़े व्यक्तियों की नीयत एक साफ सुथरी फिल्म के माध्यम से शहादत और कुरबानी के मतलब को पहचनवाना था तो फिर यह जाने बिना कि फिल्म की स्क्रिप्ट क्या है, लोगों ने उसके खिलाफ शोर मचाना क्यों प्रारंभ कर दिया.

इंटरनेट और सोशल मार्किटिंग एक्सपर्ट मोहम्मद सिब्तैन बताते हैं कि इससे यह पता चलता है कि सोशल मीडिया आज के समय में कितना प्रभावशाली हो गया है. सोशल मीडिया के माध्यम से प्रोपेगेंडा करने वालों और उससे अपने निजी स्वार्थ हासिल करने वालों से बच कर रहें. आने वाले समय में सोशल मीडिया और अधिक ताकतवर हो जाएगा.
आरएनआइ न्यूज़ नेटवर्क

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