अपराध
भागा फिरता मोहन ढोली का परिवार
- 27 July 2012
 
आरोपियों  ने कई बार मोहन लाल ढोली व राधेश्याम ढोली के मोबाइल पर काल कर उसे  धमकियां दीं. उनसे कहा कि न्यायालय में विचाराधीन मामले में समझौता कर ले,  अन्यथा गांव छोड़ के चला जा. हम तुझे गांव में नही रहने देंगे... 
लखन सालवी
राजस्थान के  भीलवाड़ा जिले के गंगापुर थाना क्षेत्र के काबरिया खेड़ा गांव के दलित  समुदाय के एक परिवार के सभी पुरुष पिछले कुछ दिनों से गांव छोड़कर  भागे-भागे फिर रहे हैं. उन्हें सवर्ण गाडरी समुदाय के लोग जान से मारने की  धमकी दे रहे हैं. 
इस दलित  परिवार के मुखिया मोहन लाल ढोली कांपती आवाज में कहते हैं 'गाडरी समुदाय के  लोग करीबन एक माह से हमारा पीछा कर रहे हैं. उन्होंने अपने अपराधी किस्म  के दोस्तों को गांव में बुला लिया है. वो हमारे घर के आसपास मंडराते हैं और  आँखें तरेरते हुए जान से मार देने की धमकी देते हैं. हम डर कर गांव छोड़कर  भागे-भागे फिर रहे हैं.’’ हमारी महिलाएं गांव में ही हैं, वो लोग उन्हें  भी धमकियां दे रहे हैं. वो कह रहे हैं कब तक बचते रहोगे.' मोहन लाल को डर  है कि वो गांव में जाएंगे तो गाडरी लोग उन्हें मार देंगे.

सवाल यह  उठता है कि आखिर गाडरी समुदाय के लोग इस दलित परिवार के लोगों को मारने की  धमकी क्यों दे रहे हैं, आखिर इनका दलितों से झगड़ा किस बात है? इस बारे में  पूछने पर मोहन लाल बताते हैं की कोई दो साल पहले उनका बेटा राधेश्याम ढोली  गांव में स्थित सार्वजनिक हेण्डपंप (सरकारी) पर बाल्टी में पानी भरकर  हाथ-पैर धो रहा था. वहां पास बैठे सुरेश गाडरी ने राधेश्याम को जातिगत  गालियां देते हुए कहा कि ढोलड़े यहां से पानी मत भर और आज के बाद इस  हेंडपंप के आसपास भी मत फटकना, तो राधेश्याम ने सुरेश से कहा कि यह  हेण्डपंप सार्वजनिक है तथा वो यहां से पानी भरेगा.
तब सुरेश  उसे देख लेने की धमकी देते हुए वहां से चला गया. राधेश्याम वहां से पास ही  स्थित अपने बाड़े में चला गया. थोड़ी देर बाद वहां सुरेश अपने पिता, भाई व  समाज के अन्य लोगों के साथ राधेश्याम के बाड़े में आए और उसे जातिगत  गालियां देते हुए पकड़कर घसीटते हुए गांव के बीच ले गए और वहां एक नीम के  पेड़ के तने से बांधकर उसकी पिटाई की.
किसी ने  पुलिस को सूचना दे दी तो पुलिस वहां पहुंची और राधेश्याम को बचाया. एफआईआर  दर्ज करवाई गई. लेहरू गाड़री, सुरेश गाडरी, रोशन गाडरी, हीरालाल गाडरी व  भगवान ने राधेश्याम की पिटाई की थी, लेकिन पुलिस ने मिलीभगत कर मुख्य  आरोपियों के नाम हटा दिए. सुरेश गाडरी जो कि मुख्य आरोपी था, को तथा उसके  साथ दो अन्य को बचा लिया. पुलिस ने इस मामले का चालान न्यायालय में पेश कर  दिया. मामला कोर्ट में विचाराधीन है. अब लेहरू गाडरी, सुरेश गाडरी, रोशन  गाडरी, भगवान व हीरालाल गाडरी दलित परिवार को मजबूर कर उनसे समझौता करवाने  पर उतारू है. 
ऐसा नहीं  है कि इस दलित परिवार के मुखिया मोहन लाल ढोली ने पुलिस को सूचना नहीं दी.  वह पोटलां गांव में स्थित पुलिस चौकी में गए थे. एक नहीं तीन-तीन बार चौकी  प्रभारी को शिकायत पत्र दिये थे, लेकिन नतीजा सिफर रहा. कोई कार्यवाही  नहीं, उल्टा अत्याचारियों के हौंसले और बुलन्द हुए. वो कहने लगे ‘ढोलड़े,  तू कितनी भी शिकायतें कर ले, हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता है. साले तुझे मार  खत्म कर देंगे, हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. ज्यादा से ज्यादा 2-3 महीने जेल  रहकर छूट जायेंगे.’
एक फरवरी  से 14 फरवरी 2012 के बीच आरोपियों ने कई बार मोहन लाल ढोली व राधेश्याम  ढोली के मोबाइल पर काल कर उसे धमकियां दीं. उनसे कहा कि न्यायालय में  विचाराधीन मामले में समझौता कर ले, अन्यथा गांव छोड़ के चला जा. हम तुझे  गांव में नही रहने देंगे. 12 फरवरी को तो हीरालाल व भगवान लाल अपने साथियों  सहित मोहन लाल के मकान में घुसे और जातिगत गालियां निकालते हुए राधेश्याम  के साथ मारपीट करते हुए कहा कि साले ढोलड़े अभी तक गांव छोड़कर नही गया,  घर-बार छोड़के चला वरना खत्म कर देंगे. उन्होंने महिलाओं के साथ भी  धक्कामुक्की की. 
दलित  परिवार पर अत्याचार जारी है, उनकी महिलाएं हेण्डपंप से पानी नही भर सकतीं.  दुकान से सामग्री नहीं खरीद सकती और पुरुष गांव में नहीं आ सकते हैं. अब तो  उन्हें लगने लगा है कि उनका शोषण कर रहे लोगों का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता  है, वो पावरफूल लोग हैं. लेकिन फिर भी न्याय की उम्मीद में वो यहां से  वहां भटक रहे हैं.
ग्यारह  जुलाई को मोहन लाल जिले के पुलिस अधीक्षक से मिले और पत्र देकर कार्यवाही  की मांग की. मोहन लाल ने राजस्थान में दलित मुद्दों पर कार्यरत दलित  आदिवासी एवं घुमन्तु अधिकार अभियान राजस्थान (डगर) के जिला संयोजक महादेव  रेगर से मिलकर पूरे घटनाक्रम के बारे में उन्हें बताया है. महादेव रेगर का  कहना है कि जिले में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. जहां  संवेदनशील प्रशासन होता है, आपसी वैमनस्य नही बढ़ता है अन्यथा अराजकता का  माहौल है. दलितों को सवर्णों द्वारा किए जा रहे अत्याचार के कारण भागे-भागे  फिरना पड़े, इससे अधिक बुरे हालत और क्या हो सकते हैं.
लखन सालवी जनसंघर्षों से जुड़े पत्रकार हैं. 


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