शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

निसार मैं तेरी गलियों के, ऐ वतन, के जहाँ

चली है रस्म के कोई न सर उठा के चले

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें