सफाई  दरोगा हर माह किसी न किसी बहाने अल्लाहरखी की तनख्वाह काट लेता है और  कामचोरी के आरोप में उस पर जुर्माना लगा देता है. एक दिन तंग आकर वइ उसको  गालियां देती है. इसके बाद उसे लगता है कि सफाई दरोगा या तो उसे नौकरी से  निकाल देगा या तनख्वाह काट लेगा, लेकिन उसे तब आश्चर्य होता है जब उसे पूरी  तनख्वाह मिलती है...
प्रेमचंद  जयंती के अवसर पर गोरखपुर के प्रेमचंद पार्क में 31 जुलाई को प्रेमचंद  साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इप्टा की गोरखपुर इकाई ने  ‘जुर्माना’ और सांस्कृतिक संगम ने ‘कप्तान साहब’ का मंचन किया. दोनों नाटक  प्रेमंचद के इसी नाम की कहानी पर आधारित थे. गौरतलब है कि प्रेमचंद ने  ‘कप्तान साहब’ कहानी इसी स्थान पर प्रेमचंद निकेतन में रहते हुए लिखी थी.

इस मौके  पर युवा कथाकार लाल बहादुर ने अपनी कहानी ‘आंखों की महक’ और रवि राय ने  ‘बकरी’ का पाठ किया. दोनों कहानियों पर उपस्थित श्रोताओं ने चर्चा की.  कुशीनगर जिले के फाजिलनगर कस्बे से आए अध्यापक मंगल प्रसाद ने भोजपुरी के  प्रमुख कवि धरीक्षण मिश्र, अंजन जी और त्रिलोकी नाथ के गीतों की प्रस्तुति  की. इस कार्यक्रम में दर्शकों, श्रोताओं में नगर के साहित्यकार,  संस्कृतिकर्मी तो थे ही, बड़ी संख्या में आमजन भी थे. तीन सत्रों में हुए  इस समारोह का संचालन प्रेमचंद साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने  किया.
कार्यक्रम  की शुरूआत प्रेमचन्द की कहानी 'जुर्माना' के मंचन से हुई. इस नाटक में  सफाईकर्मियों के शोषण और व्यथा को अल्लाहरखी नाम की एक महिला सफाईकर्मी के  जरिए सामने लाया गया है. सफाई दरोगा हर माह किसी न किसी बहाने अल्लाहरखी की  तनख्वाह काट लेता है और कामचोरी के आरोप में उस पर जुर्माना लगा देता है.  एक दिन तंग आकर वइ सफाई दरोगा को गालियां देती है. इस घटना के बाद उसे लगता  है कि सफाई दरोगा या तो उसे नौकरी से निकाल देगा या तनख्वाह काट लेगा,  लेकिन उसे तब आश्चर्य होता है जब इसके बाद उसे पूरी तनख्वाह मिलती है. 
प्रेमचन्द  की इस कहानी में सूदखोरों के दुष्चक्र में फंसे सफाईकर्मियों की पीड़ा  बखूबी बयान हुई है. इस नाटक को देखने वालों में सफाईकर्मी सुरेन्द्र और  क्रान्ति भी थे, जिनकी प्रतिक्रिया थी कि वह तो आज भी उसी तरह सूदखोरों के  दुष्चक्र और सफाई ठेकेदारों के शोषण के शिकार हैं जिस तरह प्रेमचंद की  कहानी में अल्लाहरखी और उसका पति हुसैनी हैं. 
सांस्कृतिक  संगम ने प्रेमचन्द की कहानी 'कप्तान साहब' का मंचन किया. नाटक का निर्देशन  मानवेन्द्र त्रिपाठी ने किया. उन्होंने कई प्रयोग कर इसे बहुत रोचक तरीके  से प्रस्तुत किया. नाटक के केन्द्रीय पात्र जगत सिंह की बचपन की बदमाशियों  को रोचक हास्य के साथ दिखया. नाटक का अंतिम दृश्य बहुत भावपूर्ण था जब जगत  सिंह सेना में कप्तान बन जाता है और जेल में बंद पिता को जमानत पर छुड़ाने  आता है. 
नाट्य  मंचन के बाद युवा कथाकार लाल बहादुर ने अपनी कहानी 'आंखों की महक' और रवि  राय ने 'बकरी' का पाठ किया. दोनों कहानियों पर चर्चा करते हुए युवा अध्यापक  आनन्द पांडेय ने कहा कि 'आंखों की महक' पीढि़यों के टकराव को सामने लाती  है. 'बकरी' में देशज शब्दों के प्रयोग का सटीक बताते हुए उन्होंने कहा इस  कहानी की कमजोरी यह है कि यह हमें कहीं ले नहीं जाती. कहानी का उद्देश्य  पाठक का परिष्कर होना चाहिए. 
राजाराम  चौधरी के मुताबिक 'आंखों की महक' युवा सफाई कर्मियों के सपनों के मर जाने  की कहानी है. कवि प्रमोद कुमार के अनुसार आज उसी तरह कहानियां लिखी जा रही  हैं जैसे अखबारों में घटनाओं के बारे में खबर लिखी जाती है. यथार्थ को  वैचारिक आधार पर मोड़ने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इससे कहानी छूट जाती है.  राजनीतिक कार्यकर्ता राजेश साहनी ने कहा रचनाकार को यह ध्यान में रखना ही  चाहिए कि वह किसके लिए लिख रहा है और उसके लिखने का क्या उद्देश्य है. 
युवा  आलोचक डॉ. अनिल राय ने दोनों कहानियों का गंभीर विश्लेषण करते हुए बताया  यदि कहानी की केन्द्रीय अन्तर्वस्तु बहुत जानी-पहचानी है तो उसका शिल्प नया  होना चाहिए, जिससे वह बड़ी कहानी बनती है. प्रो. जर्नादन ने 'आंखों की  महक' को एक मां के चाहत की कहानी बताया. उनकी 'बकरी' पर टिप्पणी थी कि  कहानी का केन्छ्रीय पा़त्र मंगरू का व्यवहार किसान जैसा नहीं लगता, लेकिन  उसका बेटा जरूर किसान है. यह गांव के परिवेश की कहानी होते हुए भी किसान की  कहानी नहीं है. 
प्रो. सदान्ंद शाही ने कहा कि दोनों कहानियों  में एक सामान्य बात यह है कि ये नई पीढ़ी के सपने के साथ खड़ी होती है.  इनमें अगली पीढी के प्रति विश्वास है. नहीं तो आज के अधिकतर कहानीकार युवा  पीढ़ी के प्रति आशंकाग्रस्त दिखते हैं. वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने कहा लाल  बहादुर अपनी ने कहानी में परिचित यथार्थ के बीच कहानी का ढांचा तैयार किया  है, लेकिन कहानी सपनों के टूटने पर स्थिर हो जाती है और बड़ा यथार्थ छूट  जाता है. उन्होंने 'बकरी' के शिल्प और कथ्य की प्रशंसा की. इस परिचर्चा में  फिल्मकार प्रदीप सुविज्ञ, कथाकार राज कुमार सिंह, बेचन पटेल आदि ने भी  अपनी बात रखी.
अध्यापक  मंगल प्रसाद ने भोजपुरी लोक गीतों के गायन से लोगों का दिल जीत लिया.  उन्होंने पूर्वांचल के महत्वपूर्ण भोजपुरी कवि धरीक्षण मिश्र का गीत-'कौने  दुख डोलिया में रोवत जात कनिया...' अंजन जी का गीत 'नन्हकी बकरिया...',  त्रिलोकी नाथ की रचना 'रोई-रोई पतिया लिखावे रजमतिया...' का गायन किया.
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